Introduction to the Stock Market and Key Terminologies || शेयर बाजार की मूल बातें और प्रमुख शब्दावली
शेयर बाजार की मूल बातें और प्रमुख शब्दावली
शेयर बाजार क्या है?:- शेयर बाजार या इक्विटी मार्केट एक ऐसा मंच है जहां कंपनियां अपने शेयर बेचकर पूंजी जुटाती हैं, और निवेशक इन शेयरों को खरीदकर कंपनी के मालिक बन सकते हैं। ये शेयर एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होते हैं, जहां खरीदार और विक्रेता मिलकर शेयरों का लेन-देन करते हैं।
स्टॉक मार्केट क्या है?:- स्टॉक मार्केट वह स्थान है जहाँ कंपनियों के शेयर (अंश) खरीदे और बेचे जाते हैं। यह एक ऐसा मंच है जहाँ कंपनियाँ अपने शेयरों को सार्वजनिक रूप से बेचकर पूंजी (Capital) जुटाती हैं, और निवेशक (Investors) उन शेयरों को खरीदकर कंपनी में हिस्सेदारी प्राप्त करते हैं। सरल भाषा में, स्टॉक मार्केट एक ऐसा बाज़ार है जहाँ लोग कंपनियों के शेयर खरीदकर उनके मुनाफ़े का हिस्सा बन सकते हैं।
स्टॉक और शेयर का मतलब :- स्टॉक और शेयर एक ही चीज़ को दर्शाते हैं। जब कोई कंपनी पूंजी जुटाने के लिए अपने हिस्सों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटती है, तो उन हिस्सों को शेयर कहा जाता है। स्टॉक का मतलब किसी भी कंपनी में आपका स्वामित्व या भागीदारी है।
स्टॉक एक्सचेंज क्या है? स्टॉक एक्सचेंज वह प्लेटफार्म है जहाँ स्टॉक्स (शेयर) खरीदे और बेचे जाते हैं। भारत में दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं:
- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE): यह एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है, जिसकी स्थापना 1875 में हुई थी।
- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE): यह 1992 में स्थापित हुआ और यह इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की सुविधा देता है।
शेयर कैसे खरीदे और बेचे जाते हैं?:- किसी भी स्टॉक को खरीदने या बेचने के लिए आपको एक डीमैट खाता (Demat Account) और एक ट्रेडिंग खाता (Trading Account) की आवश्यकता होती है। डीमैट खाता में आपके खरीदे हुए शेयर रखे जाते हैं, और ट्रेडिंग खाता से आप शेयरों की खरीद और बिक्री कर सकते हैं।
शेयर बाजार में निवेश क्यों करें?
- लंबी अवधि में धन वृद्धि: शेयर बाजार में लंबी अवधि के निवेश से अच्छा रिटर्न मिल सकता है, जो कि अन्य निवेश विकल्पों जैसे कि बचत खातों या एफडी से अधिक हो सकता है।
- कंपनी के मालिक बनें: शेयर खरीदकर आप किसी कंपनी के मालिक बन जाते हैं और उसके मुनाफे में हिस्सेदार बनते हैं।
- लिक्विडिटी: शेयर बाजार में निवेश किए गए धन को आसानी से नकदी में बदला जा सकता है।
शेयर बाजार की प्रमुख शब्दावली
- शेयर (Share): एक कंपनी के स्वामित्व का एक हिस्सा।
- स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange): एक ऐसा मंच जहां शेयरों का व्यापार होता है। भारत में प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं:
- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE)
- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE)
- ब्रोकर (Broker): एक मध्यस्थ जो निवेशकों की ओर से शेयरों का खरीद-बिक्री करता है।
- डिमैट अकाउंट (Demat Account): एक इलेक्ट्रॉनिक खाता जहां शेयरों को डिजिटल रूप से रखा जाता है।
- ट्रेडिंग अकाउंट (Trading Account): एक खाता जिसके माध्यम से शेयरों का व्यापार किया जाता है।
- मार्केट कैपिटलाइज़ेशन (Market Capitalization): एक कंपनी के सभी शेयरों के कुल मूल्य को कहते हैं।
- शेयर प्राइस (Share Price): एक शेयर का वर्तमान बाजार मूल्य।
- बुल मार्केट (Bull Market): जब शेयर बाजार में तेजी होती है और शेयरों के मूल्य बढ़ते हैं।
- बेयर मार्केट (Bear Market): जब शेयर बाजार में मंदी होती है और शेयरों के मूल्य गिरते हैं।
- डिवीडेंड (Dividend): कंपनी द्वारा शेयरधारकों को उनके शेयरों के बदले में दिया जाने वाला लाभांश।
- आईपीओ (IPO): इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग, जब एक कंपनी पहली बार अपने शेयर जनता को बेचती है।
- फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis): एक निवेश विधि जिसमें कंपनी की वित्तीय स्थिति, व्यवसाय मॉडल और भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण किया जाता है।
- टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis): एक निवेश विधि जिसमें शेयर की कीमतों के चार्ट का अध्ययन करके भविष्य की कीमतों का अनुमान लगाया जाता है।
शेयर बाजार में निवेश करने से पहले:-
- शिक्षा और जागरूकता: शेयर बाजार के बारे में अच्छी तरह से समझें और सीखें।
- लंबी अवधि का दृष्टिकोण: शेयर बाजार में लंबी अवधि के निवेश से बेहतर रिटर्न मिल सकता है।
- विविधीकरण: अपने निवेश को विभिन्न शेयरों और सेक्टरों में विभाजित करें।
- भावनाओं पर नियंत्रण: बाजार की उतार-चढ़ाव से प्रभावित न हों और धैर्य रखें।
- सलाह लें: यदि आवश्यक हो, तो एक योग्य वित्तीय सलाहकार से सलाह लें।
निवेशक सावधान रहें:-
- जोखिम समझें: शेयर बाजार में निवेश जोखिम भरा हो सकता है।
- अपने लक्ष्यों को स्पष्ट करें: निवेश के लक्ष्यों को निर्धारित करें और उसके अनुसार निवेश करें।
- अनुशासन का पालन करें: निवेश योजना का पालन करें और भावनात्मक निर्णय लेने से बचें।
- नियमित रूप से निगरानी रखें: अपने निवेश पोर्टफोलियो की नियमित रूप से समीक्षा करें।
निष्कर्ष:- शेयर बाजार एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसे समझदारी से इस्तेमाल करने की जरूरत है। सही जानकारी, अनुशासन, और धैर्य के साथ, आप शेयर बाजार में सफल निवेश कर सकते हैं।
55 प्रमुख शब्दावली (55 Key Terminologies)
1. बुल मार्केट (Bull Market) : यह वह स्थिति होती है जब स्टॉक मार्केट में लगातार वृद्धि होती है और निवेशक आशावादी होते हैं। बुल मार्केट में शेयरों के दाम बढ़ते हैं।
2. बियर मार्केट (Bear Market):- बियर मार्केट वह स्थिति होती है जब स्टॉक मार्केट में लगातार गिरावट होती है। इस समय निवेशक निराश होते हैं और शेयरों के दाम गिरने लगते हैं।
3. IPO (Initial Public Offering):- जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयरों को जनता के लिए बेचती है, तो उसे IPO कहा जाता है। इसके माध्यम से कंपनी स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध हो जाती है और निवेशकों को अपनी कंपनी में निवेश करने का मौका देती है।
4. डीमैट खाता (Demat Account):- यह एक प्रकार का बैंक खाता है, जहाँ आपके खरीदे गए शेयर डिजिटल रूप में संग्रहीत होते हैं। डीमैट खाता में शेयरों को भौतिक रूप में रखने की जरूरत नहीं होती है, जिससे शेयरों को खरीदना और बेचना आसान हो जाता है।
5. बिड और आस्क (Bid and Ask):-
- बिड प्राइस वह मूल्य है जिस पर कोई खरीदार शेयर खरीदने को तैयार होता है।
- आस्क प्राइस वह मूल्य है जिस पर कोई विक्रेता शेयर बेचने को तैयार होता है। बिड और आस्क के बीच का अंतर स्प्रेड (Spread) कहलाता है।
6. मार्केट कैपिटलाइजेशन (Market Capitalization):- मार्केट कैप किसी कंपनी की कुल बाजार मूल्य को दर्शाता है। यह कंपनी के जारी किए गए कुल शेयरों की संख्या और उनके मौजूदा बाजार मूल्य का गुणा होता है। इसे आमतौर पर तीन भागों में विभाजित किया जाता है:
- लार्ज कैप: बड़ी और स्थिर कंपनियाँ।
- मिड कैप: मध्यम आकार की कंपनियाँ।
- स्मॉल कैप: छोटी और उच्च जोखिम वाली कंपनियाँ।
7. डिविडेंड (Dividend):- डिविडेंड वह राशि होती है जो कंपनी अपने मुनाफे का एक हिस्सा अपने शेयरधारकों को देती है। यह आमतौर पर प्रति शेयर के आधार पर दिया जाता है।
8. पी/ई अनुपात (P/E Ratio):- पी/ई अनुपात किसी कंपनी के स्टॉक का मूल्य उसके प्रति शेयर आय (Earnings per Share) के अनुपात में दर्शाता है। यह निवेशकों को यह जानने में मदद करता है कि किसी कंपनी का स्टॉक महंगा है या सस्ता।
9. वोल्यूम (Volume):- वोल्यूम किसी विशेष अवधि में खरीदे और बेचे गए शेयरों की कुल संख्या को दर्शाता है। उच्च वोल्यूम दर्शाता है कि उस स्टॉक में व्यापारिक गतिविधियाँ अधिक हो रही हैं।
10. मूल्य (Price) और मात्रा (Volume) का रुझान:- मूल्य और मात्रा के रुझान यह दर्शाते हैं कि किसी स्टॉक की कीमत किस दिशा में जा रही है। यदि कीमत और मात्रा दोनों ही बढ़ते हैं, तो यह एक सकारात्मक संकेत हो सकता है, और यदि कीमत गिर रही हो और मात्रा बढ़ रही हो, तो यह एक नकारात्मक संकेत हो सकता है।
11. सेबी (SEBI - Securities and Exchange Board of India):- यह भारत में स्टॉक मार्केट को विनियमित (Regulate) करने वाली संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य निवेशकों के हितों की रक्षा करना और वित्तीय बाजार में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
12. लिक्विडिटी (Liquidity):- लिक्विडिटी उस क्षमता को दर्शाती है जिसके तहत कोई स्टॉक आसानी से नकदी में बदला जा सकता है, बिना उसकी कीमत में बड़े बदलाव के। उच्च लिक्विडिटी वाले शेयर आसानी से खरीदे और बेचे जा सकते हैं।
13. मार्जिन (Margin):- मार्जिन वह राशि होती है जो निवेशकों को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में रखनी होती है ताकि वे अधिक शेयरों का व्यापार कर सकें, खासकर जब वे उधार ली गई राशि का उपयोग कर रहे होते हैं। इसे "मार्जिन ट्रेडिंग" कहा जाता है।
14. एवरेजिंग डाउन (Averaging Down):- जब कोई निवेशक उस समय और शेयर खरीदता है जब शेयर की कीमत गिर रही होती है, तो इसे एवरेजिंग डाउन कहा जाता है। इस रणनीति का उद्देश्य शेयर की औसत खरीद कीमत को कम करना होता है।
15. इंडेक्स (Index):- इंडेक्स एक समूह होता है जो स्टॉक मार्केट के प्रदर्शन को मापता है। उदाहरण के लिए, भारत में दो प्रमुख इंडेक्स हैं:
- सेंसेक्स (Sensex): BSE के 30 प्रमुख कंपनियों के शेयरों का औसत।
- निफ्टी (Nifty): NSE के 50 प्रमुख कंपनियों के शेयरों का औसत। इंडेक्स हमें बताता है कि समग्र रूप से मार्केट ऊपर जा रहा है या नीचे।
16. इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday Trading):- इंट्राडे ट्रेडिंग में स्टॉक की खरीद और बिक्री उसी दिन के भीतर होती है। इसका मतलब है कि ट्रेडर उसी दिन शेयर खरीदकर बेच देता है, और उसका उद्देश्य छोटी अवधि में मुनाफा कमाना होता है।
17. होल्डिंग पीरियड (Holding Period):- यह वह अवधि होती है जब कोई निवेशक अपने शेयरों को खरीदे रखने का निर्णय लेता है। होल्डिंग पीरियड लंबी या छोटी अवधि का हो सकता है, और इसका असर निवेश के मुनाफे पर पड़ता है।
18. ऑर्डर टाइप्स (Order Types):- निवेशकों के पास शेयर खरीदने और बेचने के लिए विभिन्न प्रकार के ऑर्डर होते हैं, जैसे:
- मार्केट ऑर्डर (Market Order): यह ऑर्डर तुरंत मार्केट में उपलब्ध कीमत पर शेयर खरीदने या बेचने का होता है।
- लिमिट ऑर्डर (Limit Order): इस ऑर्डर में निवेशक अपने शेयर को एक निश्चित कीमत पर खरीदने या बेचने की सीमा तय करता है।
- स्टॉप लॉस ऑर्डर (Stop Loss Order): यह एक ऑर्डर होता है जिसमें निवेशक अपने शेयरों को उस समय बेचता है जब कीमत एक निश्चित स्तर से नीचे गिर जाती है, जिससे नुकसान को रोका जा सके।
19. बायबैक (Buyback):- बायबैक तब होता है जब कोई कंपनी अपने ही शेयरों को निवेशकों से वापस खरीदती है। यह तब किया जाता है जब कंपनी को लगता है कि उसके शेयरों का मूल्य कम हो गया है या वह अपनी नकदी को शेयरधारकों के हित में इस्तेमाल करना चाहती है।
20. ब्रोकर (Broker):- ब्रोकर एक मध्यस्थ होता है जो निवेशकों को स्टॉक एक्सचेंज पर शेयर खरीदने और बेचने में मदद करता है। ब्रोकर के माध्यम से ही आप अपने डीमैट और ट्रेडिंग खातों के जरिए ट्रेड कर सकते हैं। इसके बदले में ब्रोकर एक कमीशन (ब्रोकरज) चार्ज करता है।
21. म्यूचुअल फंड (Mutual Fund):- म्यूचुअल फंड एक ऐसा वित्तीय साधन है जहाँ कई निवेशक अपने पैसे को एकत्रित करते हैं, जिसे एक पेशेवर फंड मैनेजर अलग-अलग स्टॉक्स, बॉन्ड्स या अन्य वित्तीय साधनों में निवेश करता है। म्यूचुअल फंड छोटे निवेशकों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प है जो स्टॉक मार्केट में सीधे निवेश नहीं करना चाहते।
22. रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI):- रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) एक वित्तीय अनुपात है जो यह मापता है कि किसी निवेश पर कितना लाभ हुआ है। इसे निवेश पर मुनाफे की प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
23. बॉन्ड (Bond):- बॉन्ड एक प्रकार का ऋणपत्र होता है जिसे कंपनियाँ या सरकारें पूंजी जुटाने के लिए जारी करती हैं। बॉन्ड खरीदने वाले निवेशक बॉन्ड जारीकर्ता को उधार देते हैं और बदले में ब्याज के साथ मूलधन की वापसी की उम्मीद करते हैं।
24. डेरिवेटिव्स (Derivatives):- डेरिवेटिव्स वे वित्तीय उपकरण होते हैं जिनकी कीमत किसी अन्य संपत्ति (जैसे स्टॉक, बॉन्ड, या वस्त्र) की कीमत पर आधारित होती है। इनका उपयोग आमतौर पर जोखिम को कम करने के लिए किया जाता है।
25. हाई और लो (High and Low):-
- हाई: वह अधिकतम मूल्य जिस पर किसी शेयर का लेन-देन हुआ।
- लो: वह न्यूनतम मूल्य जिस पर किसी शेयर का लेन-देन हुआ।
26. पोर्टफोलियो (Portfolio):- पोर्टफोलियो आपके द्वारा किए गए विभिन्न निवेशों का संग्रह है, जैसे स्टॉक्स, बॉन्ड्स, म्यूचुअल फंड्स, और अन्य वित्तीय साधन। एक अच्छा पोर्टफोलियो विविधीकरण (Diversification) द्वारा जोखिम को कम करने और बेहतर रिटर्न प्राप्त करने में मदद करता है।
27. स्पेक्युलेशन (Speculation):- स्पेक्युलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें निवेशक जोखिम भरी परिसंपत्तियों (Assets) में निवेश करते हैं, जिससे वे उम्मीद करते हैं कि उनकी कीमत में बड़ा बदलाव होगा और उन्हें मुनाफा होगा। यह निवेश कम जानकारी या अनुमान पर आधारित होता है और अक्सर बहुत जोखिम भरा होता है।
28. करेक्शन (Correction):- करेक्शन तब होता है जब स्टॉक की कीमत में अचानक 10% या उससे अधिक की गिरावट आती है। यह अल्पकालिक गिरावट होती है और लंबे समय के लिए नहीं होती। बाजार के अधिक मूल्यांकन के बाद यह अक्सर होता है।
29. डीविडेंड यील्ड (Dividend Yield):- डिविडेंड यील्ड वह प्रतिशत होता है जो कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को दिए जाने वाले डिविडेंड का उसके मौजूदा शेयर मूल्य के साथ तुलना करके निकाला जाता है। यह निवेशकों को यह बताने में मदद करता है कि उन्हें उनके निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा।
30. बॉन्ड यील्ड (Bond Yield):- बॉन्ड यील्ड वह ब्याज दर होती है जो बॉन्ड धारकों को उनके निवेश पर मिलती है। इसे बॉन्ड की कीमत के आधार पर मापा जाता है। यदि बॉन्ड की कीमत बढ़ती है, तो यील्ड कम हो जाती है, और यदि कीमत गिरती है, तो यील्ड बढ़ जाती है।
31. लीवरेज (Leverage):- लीवरेज का मतलब उस प्रक्रिया से है जिसमें निवेशक या कंपनियाँ उधार ली गई धनराशि का उपयोग अपने निवेश को बढ़ाने के लिए करती हैं। यह मुनाफे को बढ़ाने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन साथ ही इसमें जोखिम भी अधिक होता है।
32. एसेट्स (Assets):- एसेट्स का मतलब किसी व्यक्ति या कंपनी के पास मौजूद संपत्ति से है, जिसे नकदी में बदला जा सकता है। एसेट्स दो प्रकार के होते हैं:
- वर्तमान संपत्तियाँ (Current Assets): जो आसानी से नकदी में बदली जा सकती हैं, जैसे नकद, इन्वेंटरी।
- अचल संपत्तियाँ (Fixed Assets): जो लंबे समय के लिए होती हैं, जैसे भूमि, इमारतें।
33. कैपिटल गेन्स (Capital Gains):- जब कोई निवेशक किसी स्टॉक, बॉन्ड, या किसी अन्य परिसंपत्ति को खरीदने के बाद बेचता है और उसे लाभ होता है, तो उसे कैपिटल गेन कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है:
- शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन: जब परिसंपत्ति को 36 महीनों या उससे कम समय के भीतर बेचा जाता है।
- लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन: जब परिसंपत्ति को 36 महीनों से अधिक समय के बाद बेचा जाता है।
34. शॉर्ट सेलिंग (Short Selling):- शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग तकनीक है जिसमें निवेशक स्टॉक्स उधार लेकर उन्हें बेचते हैं, उम्मीद करते हैं कि बाद में वे उन्हें कम कीमत पर वापस खरीद सकेंगे और इस अंतर से मुनाफा कमा सकेंगे। यह एक उच्च जोखिम वाला व्यापार है।
35. अर्निंग्स पर शेयर (EPS - Earnings Per Share):- EPS एक महत्वपूर्ण वित्तीय अनुपात है जो बताता है कि किसी कंपनी की प्रति शेयर कितनी कमाई (Net Profit) हो रही है। इसे कंपनी की कुल शुद्ध आय को उसके जारी किए गए कुल शेयरों की संख्या से विभाजित करके निकाला जाता है।
36. डेली प्राइस रेंज (Daily Price Range):- डेली प्राइस रेंज उस अंतर को दर्शाती है जो किसी स्टॉक की उच्चतम और न्यूनतम कीमत के बीच होता है। यह दर्शाता है कि एक दिन में स्टॉक कितना उतार-चढ़ाव करता है।
37. कॉरपोरेट एक्शन (Corporate Action):- कॉरपोरेट एक्शन वह निर्णय होते हैं जो किसी कंपनी द्वारा लिए जाते हैं और जिनका सीधा असर उसके शेयरधारकों पर पड़ता है। कुछ प्रमुख कॉरपोरेट एक्शन हैं:
- बोनस इश्यू (Bonus Issue): जब कंपनी अपने शेयरधारकों को मुफ्त में अतिरिक्त शेयर जारी करती है।
- स्प्लिट (Split): जब कंपनी अपने शेयरों को छोटे हिस्सों में बांटती है ताकि शेयर की कीमत कम हो और अधिक निवेशक उसे खरीद सकें।
38. बेटा (Beta):- बेटा एक मापदंड है जो यह दर्शाता है कि किसी स्टॉक की कीमत में उतार-चढ़ाव बाजार के मुकाबले कितना होता है। यदि किसी स्टॉक का बेटा 1 से अधिक है, तो वह बाजार से अधिक उतार-चढ़ाव करता है। यदि बेटा 1 से कम है, तो स्टॉक बाजार की तुलना में कम उतार-चढ़ाव वाला होता है।
39. रिस्क (Risk):- रिस्क का मतलब वह संभावना है जिसमें निवेशक को नुकसान हो सकता है। स्टॉक मार्केट में निवेश करते समय, रिस्क को ध्यान में रखना आवश्यक है। उच्च रिस्क वाले निवेश से अधिक रिटर्न की संभावना होती है, लेकिन साथ ही नुकसान का खतरा भी होता है।
40. समेकन (Consolidation):- समेकन वह प्रक्रिया है जिसमें स्टॉक की कीमत एक स्थिर सीमा के भीतर चलती रहती है, न तो ऊपर जाती है और न ही नीचे। इसे आमतौर पर बाजार की स्थिरता के रूप में देखा जाता है, जब तक कि कोई बड़ा उतार-चढ़ाव न हो।
41. अंडरराइटिंग (Underwriting):- अंडरराइटिंग वह प्रक्रिया होती है जिसमें कोई वित्तीय संस्था (जैसे बैंक या निवेश कंपनी) किसी कंपनी के नए शेयरों या बॉन्ड्स की गारंटी लेती है। अंडरराइटर सुनिश्चित करता है कि शेयर या बॉन्ड की बिक्री सफलतापूर्वक हो और यदि कुछ शेयर नहीं बिकते, तो वे उन्हें खुद खरीदने के लिए तैयार रहते हैं।
42. प्री-ओपन मार्केट (Pre-Open Market):- प्री-ओपन मार्केट वह समय अवधि होती है जो सामान्य ट्रेडिंग के पहले होती है। यह समय भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में सुबह 9:00 बजे से 9:15 बजे तक का होता है, जहाँ निवेशक स्टॉक के ऑर्डर प्लेस करते हैं और इस समय के दौरान स्टॉक्स की ओपनिंग कीमत निर्धारित होती है।
43. सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker):- सर्किट ब्रेकर एक सुरक्षा उपाय होता है जिसे लागू किया जाता है जब बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव होता है। यदि किसी स्टॉक या इंडेक्स की कीमतें तय सीमा से ऊपर या नीचे जाती हैं, तो सर्किट ब्रेकर लागू कर दिया जाता है और ट्रेडिंग को अस्थायी रूप से रोक दिया जाता है। यह निवेशकों को बड़ी गिरावट या उछाल से बचाने का एक तरीका है।
44. ओवरसब्सक्राइब (Oversubscribe):- ओवरसब्सक्राइब तब होता है जब किसी IPO (Initial Public Offering) में निवेशकों द्वारा जितने शेयर उपलब्ध होते हैं उससे अधिक मांग होती है। इसका मतलब है कि निवेशकों की मांग उस संख्या से अधिक होती है जितने शेयर कंपनी ने जारी किए हैं।
45. रिवर्सल (Reversal):- रिवर्सल वह स्थिति होती है जब स्टॉक की कीमत का रुझान बदल जाता है, यानी यदि कीमतें पहले बढ़ रही थीं, तो वे गिरने लगती हैं, और यदि पहले गिर रही थीं, तो वे बढ़ने लगती हैं। रिवर्सल का विश्लेषण तकनीकी विश्लेषण द्वारा किया जाता है।
46. रेपो रेट (Repo Rate):- रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर देश की केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक) वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करती है। जब रेपो रेट बढ़ती है, तो बैंकों से लिए गए ऋण महंगे हो जाते हैं, जिससे कंपनियों और ग्राहकों पर इसका असर पड़ता है, और स्टॉक मार्केट में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
47. स्विंग ट्रेडिंग (Swing Trading):- स्विंग ट्रेडिंग एक प्रकार की ट्रेडिंग रणनीति है जिसमें निवेशक या ट्रेडर कुछ दिनों या हफ्तों के भीतर शेयर खरीदते और बेचते हैं। इसका उद्देश्य छोटे अवधि के मूल्य उतार-चढ़ाव का लाभ उठाना होता है। यह इंट्राडे ट्रेडिंग से लंबी और लंबी अवधि के निवेश से छोटी अवधि की रणनीति होती है।
48. सपोर्ट और रेजिस्टेंस (Support and Resistance):-
- सपोर्ट वह स्तर होता है जहाँ स्टॉक की कीमत नीचे गिरने से रुक जाती है और फिर से ऊपर उठने लगती है।
- रेजिस्टेंस वह स्तर होता है जहाँ स्टॉक की कीमत बढ़ते-बढ़ते रुक जाती है और फिर से नीचे गिरने लगती है। सपोर्ट और रेजिस्टेंस तकनीकी विश्लेषण के महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं और यह स्टॉक के मूल्य रुझानों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं।
49. फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis):- फंडामेंटल एनालिसिस का उद्देश्य किसी कंपनी की वास्तविक आंतरिक (Intrinsic) मूल्य का विश्लेषण करना है। इसमें कंपनी के वित्तीय विवरण, मुनाफा, घाटा, उत्पाद, प्रबंधन, उद्योग, और व्यापक आर्थिक स्थिति (Macro-Economic Factors) का अध्ययन किया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कंपनी का स्टॉक उसके सही मूल्य से कम या अधिक पर ट्रेड हो रहा है या नहीं।
50. इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading):- इनसाइडर ट्रेडिंग वह अवैध प्रक्रिया है जिसमें किसी कंपनी के आंतरिक जानकारी के आधार पर शेयरों की खरीद-बिक्री की जाती है। यह गैरकानूनी है क्योंकि इसमें उन निवेशकों को अनुचित लाभ मिलता है जो आम जनता से पहले महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं।
51. स्मॉल-कैप, मिड-कैप, और लार्ज-कैप स्टॉक्स (Small-Cap, Mid-Cap, Large-Cap Stocks):-
- स्मॉल-कैप स्टॉक्स: वे स्टॉक होते हैं जो छोटी कंपनियों द्वारा जारी किए जाते हैं, जिनका बाजार पूंजीकरण कम होता है। ये स्टॉक अधिक जोखिम भरे होते हैं, लेकिन उच्च मुनाफे की संभावना रखते हैं।
- मिड-कैप स्टॉक्स: ये मध्यम आकार की कंपनियों के स्टॉक होते हैं, जिनका बाजार पूंजीकरण स्मॉल-कैप और लार्ज-कैप के बीच होता है। यह मध्यम जोखिम और मुनाफा प्रदान करते हैं।
- लार्ज-कैप स्टॉक्स: ये बड़े और स्थिर कंपनियों के स्टॉक होते हैं जिनका बाजार पूंजीकरण बड़ा होता है। इनका जोखिम कम होता है, लेकिन मुनाफा भी अपेक्षाकृत स्थिर होता है।
52. डीएसपी (Dividend Reinvestment Plan - DRIP):- डीएसपी एक निवेश योजना है जिसमें शेयरधारक को नकद लाभांश लेने के बजाय उसे पुनः उसी कंपनी के शेयर खरीदने में निवेश किया जाता है। इस योजना के तहत निवेशक को अधिक शेयर मिलते हैं और लंबे समय में उनकी निवेशित राशि बढ़ जाती है।
53. हेजिंग (Hedging):- हेजिंग एक जोखिम प्रबंधन तकनीक है, जिसमें निवेशक अपने जोखिम को कम करने के लिए एक दूसरे निवेश का सहारा लेते हैं। इसका उद्देश्य संभावित हानि को कम करना होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी निवेशक को अपने स्टॉक की कीमत गिरने की चिंता है, तो वह फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीद सकता है ताकि नुकसान को संतुलित किया जा सके।
54. ब्लू-चिप स्टॉक्स (Blue-Chip Stocks):- ब्लू-चिप स्टॉक्स उन बड़ी, स्थिर, और वित्तीय रूप से मजबूत कंपनियों के स्टॉक होते हैं जो लंबी अवधि के लिए स्थिर रिटर्न और कम जोखिम प्रदान करती हैं। ये कंपनियाँ अक्सर अपने निवेशकों को नियमित लाभांश भी देती हैं।
55. पी/बी अनुपात (P/B Ratio - Price to Book Ratio):- पी/बी अनुपात किसी कंपनी के शेयर की कीमत को उसकी बुक वैल्यू (Book Value) से विभाजित करके निकाला जाता है। यह मापदंड बताता है कि क्या किसी कंपनी का स्टॉक उसकी वास्तविक संपत्तियों के मुकाबले अधिक या कम मूल्य पर बिक रहा है।
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